Friday, July 11, 2014

ना जाने ढूँढते हो क्या मेरी वीरान आँखों में
छुपा रखे है हमने तो कई तूफान आँखों में
कहां वो शोखियाँ पहले सी, अब कुछ नहीं बाकी
चले आये हो तुम क्या खोजने इन बेज़ान आँखों में
किसी का हाथ लेकर हाथ में जब तुम मिले हम से तो
कैसे टूट के बिखरा था मेरा मान आँखों में
ना समझो चुप हैं तो तुम से कोइ शिकवा नहीं बाकी
हम अपने दर्द की नहीं रखते कोइ पहचान आँखों में
मिले थे बाद मुद्दत कि हमें तुम अज़नबी बन कर
तो कैसे दर्द ना उठता मेरी हैरान आँखों में
नहीं अब फिर से कोइ राबता रखने से कुछ हासिल
कि अब दफ़ना दिये हम ने सभी अरमान आँखों में...!!